उज्जैन। जहां सच्चा प्रेम हो वहां रूप-रंग, उम्र, कद-काठी, धन-दौलत आदि सामाजिक ढकोसले कोई मायने नहीं रखते हैं। बस इंसान मन से सुन्दर होना चाहिये, तन का क्या है, वह तो प्रतिक्षण बदलता रहता है। इसकी जीती-जागती मिसाल बुधवार को विक्रम कीर्ति मन्दिर में आयोजित दिव्यांग युवक-युवती परिचय सम्मेलन में देखने को मिली। इन्दौर निवासी 25 वर्षीय सामान्य युवक दुर्गेश ने इन्दौर की ही 29 वर्षीय (अस्थिबाधित बौनापन) दिव्यांग युवती निकिता का हाथ सम्मेलन में थामा।
शीघ्र ही ये दोनों मार्च में आयोजित विवाह सम्मेलन में वैवाहिक बन्धन में बंध जायेंगे। दुर्गेश ने बताया कि वे और निकिता स्कूल में साथ में पढ़ते थे। धीरे-धीरे वे दोनों एक-दूसरे को खासतौर पर एक-दूसरे की अच्छाईयों को पसन्द करने लगे। स्कूल के बाद दोनों को अलग-अलग विषय होने के कारण कॉलेज की पढ़ाई के लिये अलग होना पड़ा। दुर्गेश बताते हैं कि कुछ दिनों पहले आयोजित दिव्यांग युवक-युवती परिचय सम्मेलन में वे एक बार फिर निकिता से मिले और उन्होंने उससे विवाह करने का निश्चय कर लिया।
दुर्गेश में कोई कमी नहीं थी, इसीलिये उनका विवाह किसी भी सामान्य लड़की से हो सकता था, लेकिन दुर्गेश ने निकिता के केवल गुण देखे, उनकी दिव्यांगता नहीं। दुर्गेश बताते हैं कि उन्हें निकिता में कोई कमी नजर ही नहीं आती। जब दुर्गेश के घरवालों को यह बात पता चली तो जाहिर है वे शुरू में थोड़ा हिचकिचाये, लेकिन फिर दुर्गेश और निकिता के एक-दूसरे के प्रति सच्चे प्रेम को देखते हुए वे दोनों के विवाह के लिये तैयार हो गये।
शासन द्वारा सामान्य व्यक्ति के दिव्यांग से विवाह करने पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है, लेकिन दुर्गेश ने एकमात्र प्रेम के कारण निकिता से विवाह करने का निश्चय किया है। गौरतलब है कि दुर्गेश ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और वे इन्दौर में एक कंपनी में बतौर इंवेंटरी इंजीनियर के पद पर काम करते हैं। वहीं निकिता नगर निगम इन्दौर में बतौर कर्मचारी कार्यरत है। दोनों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है। इसीलिये प्रोत्साहन राशि उनके लिये इतनी अहमियत नहीं रखती जितना एक-दूसरे का साथ।
जब मंच पर दोनों साथ में आये, तब सभी लोगों ने न सिर्फ इन दोनों के प्रेम की आत्मीय प्रशंसा की, बल्कि दोनों के पास बधाईयों का तांता लग गया। निश्चित रूप से ये दोनों सच्चे प्रेम की जीती-जागती मिसाल हैं जो कि आज के तड़क-भड़कभरे समय में कम ही देखने को मिलती है।